देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाले आजादी के महानायक और काले पानी की सजा के दौरान असीम पीड़ा सहने वाले महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त की पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन। 18 नवंबर, 1910 को बंगाल के बर्दवान जिले स्थित ओरी गांव में जन्में बटुकेश्वर दत्त 1924 में अपनी कॉलेज शिक्षा के दौरान भगत सिंह से मिले थे, जिनसे प्रभावित होकर वह उनके क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए।
जब अप्रैल, 1929 में ब्रिटिश संसद में पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रैड डिस्प्यूट बिल लाया गया, जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता सेनानियों को काबू में करने के लिए पुलिस प्रशासन को अधिक अधिकार देना था। उसके विरोध में बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ मिलकर संसद में बम फेंका था और इस विरोध का ही नतीजा था कि यह बिल एक वोट से पीछे रह गया और पारित नहीं हो पाया था। इसके बाद इन दोनों क्रांतिकारियों ने स्वैच्छिक गिरफ़्तारी भी दी थी, जिसके उपरांत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा मिली और बटुकेश्वर दत्त को काला पानी की सजा सुनाई गई।
बटुकेश्वर दत्त फांसी नहीं मिलने से दुखी थे लेकिन भगत सिंह ने उन्हें सजा से पूर्व एक पत्र लिखा था कि वह दुनिया के सामने उदाहरण बने कि क्रांतिकारी अपने सिद्धांतों के लिए मर ही नहीं सकते बल्कि जीवित रहकर अत्याचार को झेलते हुए देशसेवा के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इस प्रकार बटुकेश्वर दत्त काला पानी की सजा के तहत अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहे और 1938 में रिहा होकर बापू के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े, जिसके बाद पुन: उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 1945 में रिहाई मिली।
देश के आजाद होने के बाद बटुकेश्वर दत्त ने पटना में जीवन गुजारना शुरू किया और 1964 में उन्हें पता चला कि वह कैंसर से पीड़ित हैं व उनके जीवन के कुछ ही दिन शेष हैं। जिसके बाद उन्होंने तत्कालीन पंजाब सीएम रामकिशन से मिलकर मृत्योपर्यंत अपना अंतिम संस्कार शहीद भगत सिंह की समाधि के बगल में करने की आखिरी इच्छा व्यक्त की। 20 जुलाई, 1965 में बटुकेश्वर दत्त ने अंतिम सांस ली और उनकी अंतिम इच्छा को सम्मान देते हुए उनका अंतिम संस्कार हुसैनीवाला में शहीद भगत सिंह की समाधि के पास ही किया गया।